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सूर्य

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सूर्य सौरमण्डल के केन्द्र में स्थित तारा है। वह धरती पर ऊष्मा और प्रकाश का सम्पूर्ण स्रोत है। सूर्य के प्रकाश से पत्तियाँ भोजन बनाती हैं। इसी भोजन से किसी न किसी रूप में सभी जन्तु अपना पोषण और ऊर्जा प्राप्त करते हैं। सूर्य ही वर्षा का भी कारक है । सनातन धर्म में सूर्य को देवता माना गया है।

उक��तियाँ[सम्पादन]

  • ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । -- ऋग्वेद, ३-६२-१०
जो प्रणव के अर्थभूत सच्चिदानन्दमय तथा भूः, भुवः और स्व: स्वरूप से त्रिभुवनमय एवं सम्पूर्ण जगत की सृष्टि करनेवाले हैं, उन भगवान् सूर्यदेव के सर्वश्रेष्ठ तेज का हम ध्यान करते हैं। वे हमारी बुद्धियों को प्रेरणा दें।
(दूसरे शब्दों में- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। )
  • ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयत। -- (सूर्य गायत्री)
ओम! हे सूर्य देव, मैं आपकी पूजा करता हूं, आप मुझे ज्ञान के प्रकाश से रोशन करते हैं। हे दिन के निर्माता! मुझे ज्ञान दें और मेरे मन को हल्का करें।
  • सूर्याद्भवन्ति भूतानि सूर्येण पालितानि तु ।
सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च ॥ -- सूर्योपनिषद्
सूर्य से सम्पूर्ण चराचर जीव उत्पन्न होते हैं, सूर्य के द्वारा ही उनका पालन होता है और फिर सूर्य मे ही वे लय को प्राप्त होते हैं । और जो सूर्यनारायण हैं, वह मैं ही हूँ।
  • सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च । सूर्याद्वै खल्विमानि भूतानि जायन्ते । सूर्याद्यज्ञः पर्जन्योऽन्न���ात्मा नमस्त आदित्य । -- सूर्योपनिषद्
सूर्य सम्पूर्ण जंगम तथा स्थावर-जगत के आत्मा हैं। निश्चयपूर्वक सूर्यनारायण से ही ये भूत उत्पन्न होते हैं। सूर्य से यज्ञ, मेघ, अन्न (बल-वीर्य) और आत्मा (चेतना) का आविर्भाव होता है। आदित्य ! आपको हमारा नमस्कार है।
  • त्वमेव प्रत्यक्षं कर्मकर्तासि । त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वमेव प्रत्यक्षं विष्णुरसि । त्वमेव प्रत्यक्षं रुद्रोऽसि । त्वमेव प्रत्यक्षमृगसि । त्वमेव प्रत्यक्षं यजुरसि । त्वमेव प्रत्यक्षं सामासि । त्वमेव प्रत्यक्षमथर्वासि । त्वमेव सर्वं छन्दोऽसि । -- सूर्योपनिषद्
आप ही प्रत्यक्ष कर्म करने वाले हैं। आप ही प्रत्यक्ष ब्रह्म हैं । आप ही प्रत्यक्ष विष्णु हैं। आप ही प्रत्यक्ष रुद्र हैं । आप ही प्रत्यक्ष ऋक् हैं। आप ही प्रत्यक्ष यजुः हैं । आप ही प्रत्यक्ष साम हैं । आप ही प्रत्यक्ष अथर्व हैं । आप ही समस्त छन्द हैं।
  • आदित्याद्वायुर्जायते । आदित्याद्भूमिर्जायते । आदित्यादापो जायन्ते । आदित्याज्ज्योतिर्जायते । आदित्याद्व्योम दिशो जायन्ते । आदित्याद्देवा जायन्ते । आदित्याद्वेदा जायन्ते । -- सूर्योपनिषद्
आदित्य से वायु उत्पन्न होती है। आदित्य से भूमि उत्पन्न होती है। आदित्य से जल उत्पन्न होता है। आदित्य से ज्योति (अग्नि) उत्पन्न होती है। आदित्य से आकाश और दिशाएँ उत्पन्न होती हैं। आदित्य से देवता उत्पन्न होते हैं। आदित्य से वेद उत्पन्न होते हैं।
  • आदित्यो वा एष एतन्मण्डलं तपति । असावादित्यो ब्रह्म । आदित्योऽन्तःकरणमनोबुद्धिचित्ताहङ्काराः । आदित्यो वै व्यानः समानोदानोऽपानः प्राणः । आदित्यो वै श्रोत्रत्वक्चक्षूरसनघ्राणाः । आदित्यो वै वाक्पाणिपादपायूपस्थाः । आदित्यो वै शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः । आदित्यो वै वचनादानागमनविसर्गानन्दाः । आनन्दमयो ज्ञानमयो विज्ञानानमय आदित्यः । -- सूर्योपनिषद्
निश्चय ही ये आदित्य देवता इस ब्रह्माण्ड-मण्डल को तपाते (गर्मी देते) हैं। वे आदित्य ब्रह्म हैं । आदित्य ही अन्तःकरण अर्थात् मन, बुद्धि, चित्त और अहङ्काररूप हैं । आदित्य ही प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान-इन पाँचौ प्राणो के रूप मे विराजते हैं। आदित्य ही श्रोत्र, त्वचा, चक्षु, रसना और घ्राण-इन पाँच इन्द्रियो के रूप में कार्य कर रहे हैं। आदित्य ही वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ-ये पॉचो कर्मेन्द्रिय हैं । आदित्य ही शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ये ज्ञानेन्द्रियो के पॉच विषय हैं । आदित्य ही वचन, आदान, गमन, मल-त्याग और आनन्द-ये कर्मेन्द्रियो के पाँच विषय बन रहे हैं। आनन्दमय, ज्ञानमय और विज्ञानमय आदित्य ही हैं।
  • आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥
जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है।
  • उदेति सविता ताम्रः ताम्र एव अस्तमेति च ।
संपत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता ॥ -- कालिदास
सूर्य उदय के समय लाल रंग का होता है और अस्त के समय भी लाल रंग का होता है। उन्नति और विपत्ति दोनों में महान लोग एक ही तरह से रहते हैं।
  • नमस्ते देवदेवेश सहस्रकिरणोज्ज्वल ।
लोकदीप नमस्तेऽस्तु नमस्ते कोणवल्लभ ॥
भास्कराय नमो नित्यं खषोल्काय नमोनमः ।
विष्णवे कालचक्राय सोमायामिततेजसे ॥ -- भविष्यपुराण, ब्राह्मपर्व : १५३.५०-५१
सहस्र किरणों से उज्ज्वल, हे देवों के देव ! आप को नमस्कार है। हे संसार के दीपक, आपको नमस्कार है। हे कोणवल्लभ! आप को नमस्कार करता हूँ। संसार को प्रकाश देने वाले को नित्य नमस्कार है। हे अन्तरिक्ष में विचरण करने वाले (खषोल्क), आपको नमस्कार है। हे विष्णु, हे कालचक्र, हे सोम, हे अमित तेज से युक्त, आपको नमस्कार है
  • प्रलयः प्रभवश्चैव व्यक्ताव्यक्तः सनातनः
ईश्वरात्परतो विद्या विद्यायाः परत: शिवः।
शिवात्परतरो देवस्त्वमेव परमेश्वरः
सर्वत:पाणिपादान्तः सर्वतोऽक्षिशिरोमुखः।
सहस्त्रांशु: सहस्त्रास्यः सहस्त्रचरणेक्षण:
भूतादिर्भूर्भुवः स्वश्च महः सत्यं तपो जनः।
प्रदीप्तं दीपनं दिव्य सर्वलोकप्रकाशकम्
दुर्निरीक्षं सुरेन्द्राणां यद्रूपं तस्य ते नमः।।
हे सूर्य भगवान्! ' प्रलय, सृष्टि, व्यक्त, अव्यक्त एवं सनातन पुरुष आप ही हैं। साक्षात् परमेश्वर आप ही हैं।आपके हाथ और पैर सब ओर हैं। नेत्र, मस्तक और मुख भी सब ओर हैं। आपके सहस्त्रों किरणें, सहस्त्रों मुख, सहस्त्रो चरण और सहस्त्रों नेत्र हैं।आप सम्पूर्ण भूतों के आदिकारण हैं। भू: , भुव:, स्व:, मह:,जन:,तप: और सत्यम् - यह सब आपके ही स्वरूप हैं। आपका जो स्वरूप अत्यंत तेजस्वी, सबका प्रकाशक, दिव्य, सम्पूर्ण लोकों में प्रकाश बिखेरने वाला और देवेश्वरों के द्वारा भी कठिनता से देखे जाने योग्य है, उसको हमारा नमस्कार है।
  • माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी ॥ -- तुलसीदास
सूर्य जब मकर रशि में प्रवेश करते हैं, तो तीर्थराज प्रयाग में सब लोग आते हैं। देवता, दानव, किन्नर, मानव आदि सभी त्रिवेणी में स्नान करते हैं।
  • असफलता को इजाज़त दें की वो आपको बड़ा कुछ सिखाये, क्योकि प्रत्येक सूर्यास्त के बाद एक बहुत बड़ा सूर्योदय होता है। -- श्री चिन्मय
  • जब भी तुम मुझे देखना चाहते हो, तो हमेशा सूर्यास्त देखना मैं वहाँ रहूँगा। -- ग्रेस ओगेट
  • ये सिर्फ सूर्यास्त नहीं है, ये तो चाँद के उगने का वक्त भी है। -- पी सी. कास्ट
  • हर सूर्यास्त फिरसे शुरुवात करने का अवसर होता है। -- रिची नॉर्टन
  • ये ना भूलो की सुंदर सूर्यास्त के लिए आसमान में बादल होने भी जरुरी होते है। -- पाउलो कोइल्हो
  • एक स्वस्थ दिन खत्म करने के लिए सुंदर सूर्यास्त जैसा कुछ भी नहीं है। -- राहेल बोस्टन
  • हर एक अच्छे दिन का भी एक सूर्यास्त होता ही है। -- अज्ञात
  • जब सूरज डूबने के लिए आया हो, हाथ का हर काम छोड़ दीजिये और उसे देखे। -- मेहमत मूरत इल्दान
  • शाम धीरे धीरे सूर्यास्त ले आती है। -- हेनरी वाड्सवर्थ लोंगफेलो
  • जब सूरज ढल चूका होता है तो कोई मोमबत्ती उसका स्थान नहीं ले सकती। -- जॉर्ज आर. आर. मार्टिन
  • मै आपको सूर्यास्त का समय नहीं दे सकता लेकिन रात दे सकता हु। -- एरिन मैकार्थी
  • सूर्यास्त आकाश में रंग भर देता है जैसे कल ऐसा नहीं था। -- एंथोनी हिंक्स
  • सूर्यास्त का रंग अभी भी मेरा पसंदीदा रंग है और बाद में इंद्रधनुष का। -- मैटी स्टेपैनेक
  • सूर्यास्त देखना और सपने ना दिखना लगभग असंभव है। -- बर्न विलियम्स
  • मुझे लगता है की सूर्यादय मेरे लिए बहोत दुर्लभ होगा, पर सूर्यास्त मेरा पसंदीदा समय है। -- जॉन फोरमैन
  • सूर्यास्त जीवन का सार बताता है। -- अज्ञात
  • सूर्यास्त के बाद आकाश ऐसे प्रकाश में बदल जाता है, जैसे की चांदी के तारों से लिपटा हुआ हल्का बैंगनी रंग। -- जे.के. रोलिंग

इन्हें भी देखें[सम्पादन]