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तिनका

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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तिनका संज्ञा पुं॰ [सं॰ तृणक] तृण का टुकड़ा । सूखी घास या डाँठी का टुकड़ा । उ॰—तिनका सौं अपने जन कौ गुन मानत मेरु समान ।—सूर॰, १ । ८ । मुहा॰—तिनका दाँतों में पकड़ना या लेना = विनती करना । क्षमा या कृपा के लिये दीनतापूर्वक विनय करना । गिड़गिड़ाना हा हा खना । तिनका तोड़ना = (१) संबंध तोड़ना । (२) वलाय लेना । बलैया लेना । विशेष— बच्चे को नजर न लगे, इसलिये माता कभी कभी तिनका तोड़ती है । तिनके चुनना = बेसुध हो जाना । अचेत होना । पागल ये बावला हो जाना । (पागल प्रायः व्यर्थ के काम किया करने हैं) । उ॰—रंजे फिराक में तिनके चुनने की नौबत आई ।— फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ २६८ । तिनके चुनवाना = (१) पागल बना देना । (२) मोहीत करना । तिनके का सहारा = (१) थोड़ा सा सहारा ।(२) ऐसी बात जिससे कुछ थोड़ा बुहत ढारस बँधे । तिनके को पहड़ करना = छोटी बात को घड़ी कर डालना । तिनके को पहाड़ कर दिखाना = थोड़ी सी बात को बहुत बढ़ाकर कहना । तिनके की ओट पहाड़ = छोटी सी बात में किसी बड़ी बात का छिपा रहना । सिर से तिनका उतारना = (१) थोड़ा सा एहसान करना ।

२. किसी प्रकार का थोड़ा बहुत काम करके उपकार का काम करना ।